इक्कीसवीं सदी के उपन्यासों में पर्यावरण प्रदूषण
साहित्य की कोई भी विधा रही हो पर्यावरण उसमें विद्यमान रहा है। हिंदी साहित्यकारों ने हमेशा प्रकृति से प्रेरणा ग्रहण की है। लेकिन वर्तमान समय में मनुष्य की भोगवादी दृष्टि ने विकास एवं प्रगति के नाम पर पर्यावरण का व्यापक ऱ्हास किया है। जिस प्रकृति की गोद में मनुष्य ने जन्म लेकर आगे बढ़ना सीखा है, आज वही प्रकृति मनुष्य के द्वारा नष्ट की जा रही है। स्वतंत्रता के बाद से ही दिन-प्रतिदिन आधुनिकीकरण, नगरीकरण और औद्योगिकरण के नाम पर पर्यावरण को नष्ट किया जा रहा है। प्रकृति मनुष्य जीवन का प्रधान अंग होते हुए भी आज विकास और उपभोग की लालसा में मनुष्य पर्यावरण का अंधाधुंध दोहन कर प्राकृतिक संरचना के साथ खिलवाड़ कर रहा है। जिससे पर्यावरण संतुलन निरंतर बिगड़ता जा रहा है, पर्यावरण प्रदूषण से समग्र विश्व के सामने विकट समस्या उत्पन्न हो रही है।
आज भूमंडलीकरण के दौर में तथाकथित विकास के नाम पर वनों की अंधाधुंध कटाई, समुद्र एवं नदियों की गति और दिशा में मनमाना परिवर्तन, औद्योगिकरण और शहरीकरण, खनिज उत्खनन के नाम पर पारिस्थितिकी तंत्र का आवश्यकता से अधिक दोहन, जैव विविधता का क्रमिक ऱ्हास मनुष्य के सभ्य होते चले जाने का बर्बर इतिहास प्रमाणित कर रहा है। आज अंतरराष्ट्रीय कंपनियांँ प्रतियोगिता में है कि कौन कामगारों का सबसे अधिक शोषण और पर्यावरण को सबसे अधिक बर्बाद कर सकता है। वर्तमान समय में विकास का अर्थ है पर्यावरण का विनाश और व्यक्ति का अमानवीकरण आज विकास की लालसा एवं मोह में मनुष्य जल, जंगल और जमीन को नष्ट कर रहा है। इक्कीसवीं सदी के प्रतिनिधि उपन्यासों में औद्योगिक क्रांति, मल्टीनेशनल कंपनियों का निर्माण, लोह और युरेनियम खदान का निर्माण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, भूमि प्रदूषण, ग्लोबल वार्मिंग पेड़-पौधों की कटाई, जीव-जंतुओं का नष्ट होना, पशु-पक्षियों की हत्या, रासायनिक एवं कीटकनाशक पदार्थों के बढ़ते उपयोग के कारण किस प्रकार पर्यावरण का ऱ्हास हो रहा है इसका प्रभावशाली विवेचन नासिरा शर्मा कृत 'कुइयांजान', कमलेश्वर कृत 'अनबीता अतीत', एस.आर.हरनोट कृत 'हिडिंब', नवीन जोशी कृत 'दावानल', भालचंद्र जोशी कृत 'प्रार्थना में पहाड़', अलका सरावगी कृत 'एक ब्रेक के बाद', महुआ माजी कृत 'मरंग गोंड़ा नीलकंठ हुआ' आदि उपन्यासों में प्रस्तुत किया है। पर्यावरण के इसी ऱ्हास को लोगों तक पहुंँचाना और लोगों के अंदर पर्यावरण संरक्षण एवं संवर्धन के प्रति जागरूकता लाना तथा उसे एक जन आंदोलन बनाना हमारा प्रधान लक्ष्य है।
श्री. एकिले नरसिंग
सहायक प्राध्यापक - हिंदी
मो. 9665931398
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